शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

शुक्रवार... फिल्म समीक्षा...

आज शुक्रवार का दिन... फिल्म रिलीज होने का दिन... तो आइये आज हम बात करें आज रिलीज हुई फिल्म... "आई एम कलाम" के बारे में... बाल फिल्म की केटेगरी में वैसे भी गिनी चुनी अच्छी फिल्मे हैं... अगर आप बाल फिल्मे देखने के शौक़ीन हैं तो फिर यह फिल्म आपके लिए है... फिल्म एक बच्चे को ले के है जो एक गरीब परिवार से है और अपने आप को कलाम कहना पसंद करता है... ‘आई एम कलाम’ एक छोटे बच्चे की प्रेरणादायक कहानी है जो असंभव से दिखने वाले ख्वाब को हकीकत में बदलने की कोशिश करता है।

बैनर : स्माइल फाउंडेशन
निर्माता : शांतनु मिश्रा
निर्देशक : नीला मधब पांडा
कलाकार : हर्ष मायर, गुलशन ग्रोवर, पितोबश त्रिपाठी

कहानी..
गरीबी और अभाव में रहने वाला छोटू एक दिन भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का भाषण सुनता है। उसे यह जानकर आश्चर्य होता है कि राष्ट्रपति का बचपन भी कठिनाइयों से गुजरा है, लेकिन कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के जरिये वे ऊंचाइयों तक पहुंचे। इससे प्रेरणा पाकर वह अपने इस नाम "छोटू" को बदल कर ‘कलाम’ कर लेता है। वह भी कलाम की तरह हीरो बनना चाहता है। आगे की कहानी के लिए फिल्म को देखिये... हमारे हिसाब से यह एक मस्त-वाच फिल्म है... साप्ताहिकी परिवार के सुरेश भाई ने इस फिल्म को देखा और हमें भी इस फिल्म को देखने के लिए अपना मत दिया... तो फिर चलिए... इस वीक एंड को कलाम साहब को देखा जाए...

:-देव

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

शासन की बंदूक..... थोडा साहित्य...

गुरूवार का दिन..... चलिए आज कुछ साहित्य की बात की जाए..... देश की सरकार लोक-पाल का मजाक उड़ा रही है... जब पक्ष और विपक्ष दोनों ही बे-असर हो तो फिर आम जनता कहाँ जाये..... अपने देश की हालत में पक्ष और विपक्ष की जगह संसद और जनता हो गयी है.... किसी भी राजनीतिक दल में कोई विश्वास नहीं दीखता....  वैसे जब जब हुकूमतें नाकामी पे उतरी हैं कलम ने अपना फ़र्ज़ निभाया है.... आइये कुछ बानगी देखते हैं..... 

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शासन की बंदूक / नागार्जुन

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक 
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक 

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक 

बढ़ी बधिरता दसगुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक 

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक 

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक 

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तीनों बन्दर बापू के / नागार्जुन

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !

सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के !
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के !

जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के !
लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के !

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काजू भुनी प्लेट में ह्विस्की गिलास में / अदम गोंडवी

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
 
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

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जय बोल बेईमान की / काका हाथरसी

जय बोल बेईमान की
मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !

प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, 
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। 
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की, 
जय बोल बेईमान की !

महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस 
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की, 
जय बोल बेईमान की !

डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम, 
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम। 
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की, 
जय बोलो बेईमान की !

दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर, 
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर। 
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की, 
जय बोलो बेईमान की !

चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार, 
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की, 
जय बोलो बईमान की !

वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश, 
छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस। 
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की, 
जय बोलो बईमान की !

खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायँ, 
दस रुपए की भेंट में, थ्री टायर मिल जायँ। 
हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी.टी. भगवान की, 
जय बोलो बईमान की !

बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर, 
घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर। 
अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की, 
जय बोलो बईमान की !

मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल, 
मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल। 
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की, 
जय बोलो बईमान की !

न्याय और अन्याय का, नोट करो जिफरेंस, 
जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस। 
निर्बल धक्के खाएँ, तूती होल रही बलवान की, 
जय बोलो बईमान की !

पर-उपकारी भावना, पेशकार से सीख, 
दस रुपए के नोट में बदल गई तारीख। 
खाल खिंच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की, 
जय बोलो बईमान की !

नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर, 
बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर। 
गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की, 
जय बोलो बईमान की !
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मगर क्या किया जाए जी, आज कल देश की हालत बड़ी गजब हो गयी है.... न सरकार और न जनता.... दोनों का ही रुख सही दिशा में जाता नहीं दिख रहा..... ऐसा लगता है जैसे दोनों ही अलग अलग दिशा में जा रहे हैं.... और देश न जाने कौन सी राह पर बढ़ चला है..... अब हिंदुस्तान की तरक्की मानसून, खेती और किसान की तरक्की पर निर्भर नहीं करती..... अब हिन्दुस्तान की तरक्की अमेरिकी सरकार की क़र्ज़ नीति पर निर्भर करती है........  क्या कहे.... चुप चाप बस देखते रहिये..... 

मौन मौन..... 

.... 




एक मुलाकात.... कुछ ब्लॉगरों से.....


साप्ताहिकी का बुधवार का दिन हमने हिन्दी के ब्लॉगरों को समर्पित किया है... हम हर सप्ताह आपका परिचय कराएँगे हिन्दी के ब्लोगर से,  आज इस कडी की शुरुआत करते हैं..... वैसे पहली पोस्ट हम दो ब्लागरों को समर्पित करेंगे..... आईए ब्लाग जगत के इन दोनों महारथियों से परिचय कीजिए.....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने... हम और आप सभी लोग सलिल भाई से परिचित हैं, अपनी खास बिहारी शैली के लेखन और अपनें खास अंदाज़ के कारण सलिल भाई का अपना स्थान है..... मूलतः पटना के और अब राजधानी दिल्ली में निवास करते हैं अपनें सलिल भाई....



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सलिल भाई का परिचय

मूलः पटना, सम्प्रतिः नई दिल्ली, दिल्ली, एन.सी. आर., India
हमरा नामः सलिल वर्मा,वल्दः शम्भु नाथ वर्मा,साकिनः कदम कुँआ, पटना,हाल साकिनः नोएडा. हम तीन माँ के बेटा हैं,बृज कुमारी हमको जनम देने वाली,पुष्पा अर्याणी मेरे अंदर के कलाकार को जन्म देने वाली,अऊर गंगा माँ जिसके गोदी में बचपन बीता अऊर कॉलेज (साइंस कॉलेज/पटना विश्वविद्यालय) की पढाई की.बस ई तीन को निकाल लिया तो हम ही नहीं रहेंगे... 

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सलिल भाई के कुछ लोकप्रिय पोस्ट पर ध्यान चाहूँगा.....

  • मन का बात - हमको दोस्त लोगों ने फँसाया है हमरा दु चार ठो दोस्त सब मिलकर, हमको फँसा दिया. बोला तुमरा बात सब बुड़बक जैसा लगता है, लेकिन कभी कभी बहुत निमन बात भी तुम कर जाते हो. काहे नही...
  • सम्वेदना के स्वर बचपने से कुछ गंदा आदत हमको नहीं लगा या कहिये हमरी माता जी लगने नहीं दीं. जबर्दस्ती का कोनो सवाले पैदा नहीं हुआ. ऊ क...
  • पति,पत्नी और वो!!! हम तब सातवाँ या आठवाँ क्लास में पढते रहे होंगे. एतवार का दिन था अऊर जाड़ा का मौसम. हमरे घर के सामने हम लोग का खाली जमीन था. दादा जी जानबूझकर ...
  • छः अक्तूबर का तारीख याद करने पर, दिमाग़ में आज का मालूम काहे, एगो कोलाज बन रहा है. हम देख रहे हैं कि हमरा पोस्टिंग एगो गाँव में है, जहाँ से प...
  • एलेमेन्टरी माई डियर वाटसन! आइये आज आपको एगो अपने पुराना परिचित से मिलवाते हैं. आप में से बहुत सा लोग मिले भी होंगे इनसे, त उनके लिए दोबारा मिलने जइसा होगा. सबसे पाहिले...
  • काहे को ब्याही बिदेस रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा , वर्ना मुझको बेटियों की रुख़सती अच्छी लगी! मुनव्वर राना साहब के इस सेर में ...
  • छठ पूजाः यादों का कोलॉज अजीब समानता है आदमी अऊर चिड़िया में. एक तरफ त साइबेरिया उड़कर हर साल केतना पंछी एहाँ आता है अऊर दोसरा तरफ पेट के खातिर...
  • मो सम कौन???? कोई तो है!!! बचपने से बुरा संगत में पड़ गए और आज तक भुगत रहे हैं. कलम चलाना खून में मिला अऊर नाटक करना , संगीत सुनना सोहबत से. हमर...
  • छः महीने का बच्चा ! हमरे परिवार में बहुत सा लोग को ई सिकायत रहता है कि हम किसी का छोटा बच्चा गोद में लेकर नहीं खेलाते हैं. जबकि बच्चा ...
  • खेल खेल में! किरकेट का वर्ल्ड कप जीतने के बाद पूरा देस में किरकेट का हवा बह रहा है. फाइनल वाले रोज, हम पटना से चल दिए थे दिल्ली के लिए अऊर गाडी में बईठकर...
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साप्ताहिकी की ओर से हम गौरवान्वित हैं और सलिल भाई को ढेरो शुभकामनाएं.... आशा है बिहारी शैली की यह बयार हमेशा बहती रहेगी.... जो हमें अपने बरबस ही अपने गाँव की ओर खीचती रहेगी... 
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यह मन बडा चंचल होता है न, एक से संतोष ही नहीं होता इसको..... तो फ़िर भाई लीजिए इसको थोडा और मचलनें देते हैं और आपका परिचय कराते हैं शेखर सुमन से..... कटिहार से छूटा यह टाईम बम.... बडी जबरदस्त धमाका करता है..... गजब का लेखन और महज़ २६ साल की उम्र में इतना गंभीर लेखन.... वाकई सराहनीय.... 

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शेखर सुमन का परिचय

सात जुलाई उन्नीस सौ पचासी को सात बजकर सात मिनट पर कटिहार बिहार में जन्में
शिक्षा: इलेक्ट्रानिक एण्ड कम्यूनिकेशन में इंजीनियरिंग
फ़िलहाल बैंगलोर में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं.... 







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आईए शेखर सुमन के खास अंदाज़ से आपको रूबरू कराएं...... 


मेरी सारी दौलत , खोखले आदर्श,
नकली मुस्कराहट
सब छीनकर, 
दो पल के लिए ही सही
मेरा बचपन लौटा देती है माँ...
कभी डाँटकर, कभी डपटकर
कभी माथे को सहलाकर,
अपने होने का एहसास दिलाती है माँ...
जब डरा सहमा सा,
रोता हूँ मैं
मेरे आंसू पोंछकर,
अपने आँचल में छुपा लेती है माँ...
जब रात्रिपहर में निद्रा से दूर
करवट बदलता रहता हूँ मैं,
अपनी गोद में सर रख कर
लोरी सुनाती  है माँ...
परेशान वो भी है अपनी ज़िन्दगी में बहुत,
पर हँसी के परदे के पीछे,
अपने सारे गम छुपा जाती है माँ .......

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तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....    
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वैसे तो इन्ही दो पोस्टों नें हमें निहाल कर दिया लेकिन..... जैसे जैसे पढते गये अलग अलग भाव दिखाई पडते गये...... 


विषय गंभीर हो या सरल, शेखर की अपनी शैली है.... आशा है शेखर सुमन इसी प्रकार से अच्छे अच्छे विचार लाते रहेंगे.... साप्ताहिकी की ओर से आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं....... 

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 आपका अपना
  -देव 

बुधवार, 3 अगस्त 2011

हास परिहास.... इंडिया टीवी.....

साप्ताहिकी की मंगलवार की रात्रि की पोस्ट.... क्या नया तलाशे..... चलिए हास परिहास की बात की जाए.... तो भाई लीजिए हिन्दुस्तान के सबसे इण्टरटेनिंग चैनल का चर्चा किया जाए..... हमको नहीं लगता है की इंडिया टीवी से ज्यादा मनोरंजन चैनल कोई होगा..... तो फ़िर भाई लीजिए आज की यह पोस्ट इंडिया टी वी को समर्पित....

पिछले साल आई पी एल में मुम्बई और चेन्नई के फ़ाईनल मैच पर इनकी कवरेज कुछ ऐसी थी.....





वैसे हम और आप सभी लोग इंडिया टी वी देखते हैं.... ना जाने कौन सी रेटिंग में यहाँ नंबर-१ भी कहता है खुद को..... नंबर वन होगा भी.....  लीजिये और तमाशा देखिये.... हमारा दंडवत प्रणाम है इस शख्स को जिसने इंडिया टी वी पर इतना अच्छा शोध कर डाला..
इन लिंकों पर राईट क्लिक करके नए टैब में खोलिए.... और पूरा पूरा मौज लीजिये.... 

http://stupidindiatv.blogspot.com/2008/10/khooni-ped-tree-ka-rahasya.html
http://stupidindiatv.blogspot.com/2008/10/swarg-ka-shortcut.html
http://stupidindiatv.blogspot.com/2008/10/indiatv-ka-sahasik-abhiyaan.html
http://stupidindiatv.blogspot.com/2008/10/devlok-ki-yatra.html
http://stupidindiatv.blogspot.com/2008/10/swarg-jaane-ka-rasta.html
http://stupidindiatv.blogspot.com/2008/11/aadha-insaan-bolega.html



भाई हमारा तो पेट दुःख गया हँसते हँसते.... आप भी बताइये हिन्दुस्तान के इस समाचार चैनल का क्या किया जाए.....




मंगलवार, 2 अगस्त 2011

साप्ताहिकी :- साहित्य, ब्लॉग चर्चा और कुछ अपनी बातें.....

साप्ताहिकी :- साहित्य, ब्लॉग चर्चा और कुछ अपनी बातें..... एक नया ब्लॉग.... जी हाँ.... एक नए कलेवर में.... बिना किसी तड़क भड़क के, सादगी के साथ.... एक नए तेवर के साथ....  इस ब्लॉग में आपके लिए साहित्य भी होगा.... ब्लॉग चर्चा भी होगी... आम मुद्दों पर भी बात होगी.... हास्य भी होगा... गंभीर चर्चाएं भी होंगी और हमारी आपकी बातें भी होंगी.... बस यूँ समझिये सोमवार से ले के शनिवार तक हफ्ते के हर दिन एक नया विचार लायेंगे....  कोई क्रांति लाने का हमारा मकसद नहीं.... बस प्रेम और विश्वास के साथ अपने दिल की बातों को आप तक पहुँचाने का एक प्रयास मात्र होगा.... 

आशा है मेरे हर ब्लॉग की तरह आप इस ब्लॉग को भी अपना प्रेम और आशीर्वाद देंगे.... मेरा मुख्य ब्लॉग मेरी दुनिया मेरा जहां मेरा निजी ब्लॉग रहेगा और यह ब्लॉग मेरी साहित्यिक, सामाजिक और रचनात्मक पक्ष के लिए रहेगा...... 

आपका अपना
-देव कुमार झा