गुरुवार, 4 अगस्त 2011

एक मुलाकात.... कुछ ब्लॉगरों से.....


साप्ताहिकी का बुधवार का दिन हमने हिन्दी के ब्लॉगरों को समर्पित किया है... हम हर सप्ताह आपका परिचय कराएँगे हिन्दी के ब्लोगर से,  आज इस कडी की शुरुआत करते हैं..... वैसे पहली पोस्ट हम दो ब्लागरों को समर्पित करेंगे..... आईए ब्लाग जगत के इन दोनों महारथियों से परिचय कीजिए.....

चला बिहारी ब्लॉगर बनने... हम और आप सभी लोग सलिल भाई से परिचित हैं, अपनी खास बिहारी शैली के लेखन और अपनें खास अंदाज़ के कारण सलिल भाई का अपना स्थान है..... मूलतः पटना के और अब राजधानी दिल्ली में निवास करते हैं अपनें सलिल भाई....



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सलिल भाई का परिचय

मूलः पटना, सम्प्रतिः नई दिल्ली, दिल्ली, एन.सी. आर., India
हमरा नामः सलिल वर्मा,वल्दः शम्भु नाथ वर्मा,साकिनः कदम कुँआ, पटना,हाल साकिनः नोएडा. हम तीन माँ के बेटा हैं,बृज कुमारी हमको जनम देने वाली,पुष्पा अर्याणी मेरे अंदर के कलाकार को जन्म देने वाली,अऊर गंगा माँ जिसके गोदी में बचपन बीता अऊर कॉलेज (साइंस कॉलेज/पटना विश्वविद्यालय) की पढाई की.बस ई तीन को निकाल लिया तो हम ही नहीं रहेंगे... 

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सलिल भाई के कुछ लोकप्रिय पोस्ट पर ध्यान चाहूँगा.....

  • मन का बात - हमको दोस्त लोगों ने फँसाया है हमरा दु चार ठो दोस्त सब मिलकर, हमको फँसा दिया. बोला तुमरा बात सब बुड़बक जैसा लगता है, लेकिन कभी कभी बहुत निमन बात भी तुम कर जाते हो. काहे नही...
  • सम्वेदना के स्वर बचपने से कुछ गंदा आदत हमको नहीं लगा या कहिये हमरी माता जी लगने नहीं दीं. जबर्दस्ती का कोनो सवाले पैदा नहीं हुआ. ऊ क...
  • पति,पत्नी और वो!!! हम तब सातवाँ या आठवाँ क्लास में पढते रहे होंगे. एतवार का दिन था अऊर जाड़ा का मौसम. हमरे घर के सामने हम लोग का खाली जमीन था. दादा जी जानबूझकर ...
  • छः अक्तूबर का तारीख याद करने पर, दिमाग़ में आज का मालूम काहे, एगो कोलाज बन रहा है. हम देख रहे हैं कि हमरा पोस्टिंग एगो गाँव में है, जहाँ से प...
  • एलेमेन्टरी माई डियर वाटसन! आइये आज आपको एगो अपने पुराना परिचित से मिलवाते हैं. आप में से बहुत सा लोग मिले भी होंगे इनसे, त उनके लिए दोबारा मिलने जइसा होगा. सबसे पाहिले...
  • काहे को ब्याही बिदेस रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा , वर्ना मुझको बेटियों की रुख़सती अच्छी लगी! मुनव्वर राना साहब के इस सेर में ...
  • छठ पूजाः यादों का कोलॉज अजीब समानता है आदमी अऊर चिड़िया में. एक तरफ त साइबेरिया उड़कर हर साल केतना पंछी एहाँ आता है अऊर दोसरा तरफ पेट के खातिर...
  • मो सम कौन???? कोई तो है!!! बचपने से बुरा संगत में पड़ गए और आज तक भुगत रहे हैं. कलम चलाना खून में मिला अऊर नाटक करना , संगीत सुनना सोहबत से. हमर...
  • छः महीने का बच्चा ! हमरे परिवार में बहुत सा लोग को ई सिकायत रहता है कि हम किसी का छोटा बच्चा गोद में लेकर नहीं खेलाते हैं. जबकि बच्चा ...
  • खेल खेल में! किरकेट का वर्ल्ड कप जीतने के बाद पूरा देस में किरकेट का हवा बह रहा है. फाइनल वाले रोज, हम पटना से चल दिए थे दिल्ली के लिए अऊर गाडी में बईठकर...
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साप्ताहिकी की ओर से हम गौरवान्वित हैं और सलिल भाई को ढेरो शुभकामनाएं.... आशा है बिहारी शैली की यह बयार हमेशा बहती रहेगी.... जो हमें अपने बरबस ही अपने गाँव की ओर खीचती रहेगी... 
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यह मन बडा चंचल होता है न, एक से संतोष ही नहीं होता इसको..... तो फ़िर भाई लीजिए इसको थोडा और मचलनें देते हैं और आपका परिचय कराते हैं शेखर सुमन से..... कटिहार से छूटा यह टाईम बम.... बडी जबरदस्त धमाका करता है..... गजब का लेखन और महज़ २६ साल की उम्र में इतना गंभीर लेखन.... वाकई सराहनीय.... 

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शेखर सुमन का परिचय

सात जुलाई उन्नीस सौ पचासी को सात बजकर सात मिनट पर कटिहार बिहार में जन्में
शिक्षा: इलेक्ट्रानिक एण्ड कम्यूनिकेशन में इंजीनियरिंग
फ़िलहाल बैंगलोर में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे हैं.... 







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आईए शेखर सुमन के खास अंदाज़ से आपको रूबरू कराएं...... 


मेरी सारी दौलत , खोखले आदर्श,
नकली मुस्कराहट
सब छीनकर, 
दो पल के लिए ही सही
मेरा बचपन लौटा देती है माँ...
कभी डाँटकर, कभी डपटकर
कभी माथे को सहलाकर,
अपने होने का एहसास दिलाती है माँ...
जब डरा सहमा सा,
रोता हूँ मैं
मेरे आंसू पोंछकर,
अपने आँचल में छुपा लेती है माँ...
जब रात्रिपहर में निद्रा से दूर
करवट बदलता रहता हूँ मैं,
अपनी गोद में सर रख कर
लोरी सुनाती  है माँ...
परेशान वो भी है अपनी ज़िन्दगी में बहुत,
पर हँसी के परदे के पीछे,
अपने सारे गम छुपा जाती है माँ .......

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तुम शायद भूल गए वो पल,
जब उन नन्हे हाथों से
मेरी ऊँगली पकड़कर तुमने चलना सीखा था,
अपने पहले लड़खड़ाते कदम मेरी तरफ बढ़ाये थे.....
तुम शायद भूल गए...
जब मैं तुम्हारे लिए घोडा बना करता था
तुम्हारी हर बेतुकी बातें सुना करता था,
परियों कि कहानियां सुनते सुनते
मेरी गोद में सर रख कर न जाने तुम कब सो जाते थे,
जब मेरे बाज़ार से आते ही
पापा कहकर मुझसे लिपट जाते थे,
अपने लिए ढेर सारे खिलोनों कि जिद किया करते थे.
तुम शायद भूल गए...
जब दिवाली के पटाखों से डरकर मेरी गोद में चढ़ जाया करते थे,
जब मेरे कंधे पर सवारी करने को मुझे मनाते थे,
जब दिनभर हुई बातें बतलाया करते थे...
आज जब शायद तुम बड़े हो गए हो,
ज़िन्दगी कि दौड़ में कहीं खो गए हो,
आज जब मैं अकेला हूँ,
वृद्ध हूँ, लाचार हूँ,
मेरे हाथ तुम्हारी उँगलियों को ढूंढ़ते हैं,
लेकिन तुम नहीं हो शायद,
दिल आज भी घबराता है,
कहीं तुम किसी उलझन में तो नहीं ,
तुम ठीक तो हो न ....    
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वैसे तो इन्ही दो पोस्टों नें हमें निहाल कर दिया लेकिन..... जैसे जैसे पढते गये अलग अलग भाव दिखाई पडते गये...... 


विषय गंभीर हो या सरल, शेखर की अपनी शैली है.... आशा है शेखर सुमन इसी प्रकार से अच्छे अच्छे विचार लाते रहेंगे.... साप्ताहिकी की ओर से आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं....... 

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 आपका अपना
  -देव 

5 टिप्‍पणियां:

Shekhar Suman ने कहा…

ओह्ह.... एक दम से छज्जा पर चढ़ के बैठ के बैठ गए हैं, (अरे ताकि ई टाईम बम फटे तो एकदम झन्न से झन्ना जाए दिमाग सबका) ...
अपना जिकिर यहाँ देखके एकदम लाट साहिब वाला फीलिंग आ रहा है....
और चाचू का भी इंट्रो मस्त है....
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हाँ अब और क्या पढ़ रहे हैं, अच्छा कहीं शुक्रिया, धन्यवाद का तो उम्मीद नहीं न लगा लिए हैं..... भक्क अपना आदमी भी कोई शुक्रिया बोलता है क्या.... :) बस ऐसे ही लिखते रहिएगा हमेशा...
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संजय भास्‍कर ने कहा…

शेखर भाई से मुलाकात अच्छी रही

संजय भास्‍कर ने कहा…

सलिल जी और शेखर जी के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिला
................आभार आपका देव बाबू

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दोनो को ही पढ़ना भाता है।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

वाह देव बाबु क्या मुलाकात करवाई है ... जय हो भईया तुम्हारी ... दिल खुश कर दिया ... इन दोनों के बीच में हम तो फंस ही गए है ... हमारे बड़े भाई है तो हमारे छोटे ... और सच यह है अब इन दोनों से ही जब तक हर २ - ३ दिन में बातचीत नहीं हो जाती ... कुछ कमी से लगती है ! बहुत बहुत धन्यवाद ... लगे रहो भईया !