गुरुवार, 4 अगस्त 2011

शासन की बंदूक..... थोडा साहित्य...

गुरूवार का दिन..... चलिए आज कुछ साहित्य की बात की जाए..... देश की सरकार लोक-पाल का मजाक उड़ा रही है... जब पक्ष और विपक्ष दोनों ही बे-असर हो तो फिर आम जनता कहाँ जाये..... अपने देश की हालत में पक्ष और विपक्ष की जगह संसद और जनता हो गयी है.... किसी भी राजनीतिक दल में कोई विश्वास नहीं दीखता....  वैसे जब जब हुकूमतें नाकामी पे उतरी हैं कलम ने अपना फ़र्ज़ निभाया है.... आइये कुछ बानगी देखते हैं..... 

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शासन की बंदूक / नागार्जुन

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक 
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक 

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक 
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक 

बढ़ी बधिरता दसगुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक 

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक 
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक 

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक 
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक 

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तीनों बन्दर बापू के / नागार्जुन

बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बन्दर बापू के !

सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बन्दर बापू के !
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बन्दर बापू के !

जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बन्दर बापू के !
लीला के गिरधारी निकले तीनों बन्दर बापू के !

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काजू भुनी प्लेट में ह्विस्की गिलास में / अदम गोंडवी

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
 
पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में

पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नख़ास में

जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में

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जय बोल बेईमान की / काका हाथरसी

जय बोल बेईमान की
मन, मैला, तन ऊजरा, भाषण लच्छेदार,
ऊपर सत्याचार है, भीतर भ्रष्टाचार।
झूटों के घर पंडित बाँचें, कथा सत्य भगवान की,
जय बोलो बेईमान की !

प्रजातंत्र के पेड़ पर, कौआ करें किलोल, 
टेप-रिकार्डर में भरे, चमगादड़ के बोल। 
नित्य नई योजना बन रहीं, जन-जन के कल्याण की, 
जय बोल बेईमान की !

महँगाई ने कर दिए, राशन-कारड फेस 
पंख लगाकर उड़ गए, चीनी-मिट्टी तेल।
‘क्यू’ में धक्का मार किवाड़ें बंद हुई दूकान की, 
जय बोल बेईमान की !

डाक-तार संचार का ‘प्रगति’ कर रहा काम, 
कछुआ की गति चल रहे, लैटर-टेलीग्राम। 
धीरे काम करो, तब होगी उन्नति हिंदुस्तान की, 
जय बोलो बेईमान की !

दिन-दिन बढ़ता जा रहा काले घन का जोर, 
डार-डार सरकार है, पात-पात करचोर। 
नहीं सफल होने दें कोई युक्ति चचा ईमान की, 
जय बोलो बेईमान की !

चैक केश कर बैंक से, लाया ठेकेदार, 
आज बनाया पुल नया, कल पड़ गई दरार।
बाँकी झाँकी कर लो काकी, फाइव ईयर प्लान की, 
जय बोलो बईमान की !

वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश, 
छहसौ पर दस्तखत किए, मिले चार सौ बीस। 
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की, 
जय बोलो बईमान की !

खड़े ट्रेन में चल रहे, कक्का धक्का खायँ, 
दस रुपए की भेंट में, थ्री टायर मिल जायँ। 
हर स्टेशन पर हो पूजा श्री टी.टी. भगवान की, 
जय बोलो बईमान की !

बेकारी औ’ भुखमरी, महँगाई घनघोर, 
घिसे-पिटे ये शब्द हैं, बंद कीजिए शोर। 
अभी जरूरत है जनता के त्याग और बलिदान की, 
जय बोलो बईमान की !

मिल-मालिक से मिल गए नेता नमकहलाल, 
मंत्र पढ़ दिया कान में, खत्म हुई हड़ताल। 
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी, श्रमिकों के शैतान की, 
जय बोलो बईमान की !

न्याय और अन्याय का, नोट करो जिफरेंस, 
जिसकी लाठी बलवती, हाँक ले गया भैंस। 
निर्बल धक्के खाएँ, तूती होल रही बलवान की, 
जय बोलो बईमान की !

पर-उपकारी भावना, पेशकार से सीख, 
दस रुपए के नोट में बदल गई तारीख। 
खाल खिंच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की, 
जय बोलो बईमान की !

नेता जी की कार से, कुचल गया मजदूर, 
बीच सड़कर पर मर गया, हुई गरीबी दूर। 
गाड़ी को ले गए भगाकर, जय हो कृपानिधान की, 
जय बोलो बईमान की !
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मगर क्या किया जाए जी, आज कल देश की हालत बड़ी गजब हो गयी है.... न सरकार और न जनता.... दोनों का ही रुख सही दिशा में जाता नहीं दिख रहा..... ऐसा लगता है जैसे दोनों ही अलग अलग दिशा में जा रहे हैं.... और देश न जाने कौन सी राह पर बढ़ चला है..... अब हिंदुस्तान की तरक्की मानसून, खेती और किसान की तरक्की पर निर्भर नहीं करती..... अब हिन्दुस्तान की तरक्की अमेरिकी सरकार की क़र्ज़ नीति पर निर्भर करती है........  क्या कहे.... चुप चाप बस देखते रहिये..... 

मौन मौन..... 

.... 




3 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जनता बेचारी और करे भी क्या ...

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

मौनं मूर्खस्य भूषणं से प्रेरणा लेते हुए सदैव कुछ न कुछ जलाते रहिये.
कभी गुड नाइट
कभी मार्टिन
और कभी गोबर का गोइंठा
ये बरसाती मच्छर कौनों न कौनो तरीका से त मरबे ही करेगा.

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ई क्रान्तिया जिन मरे दा, भगत, सुभाष, सावरकर का अपमान त नइखे होवे के चाही.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

दमदार प्रस्तुति।